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अंदाज़

हाथों की लकीरों की आवाज़ सुनानी होगी,
अब दिल में छुपी जो हर बात बतानी होगी,

खामोश रहने से कुछ मिलता नहीं सफ़र में,
अब खुद से ही खुद को पुकार लगानी होगी,

अंदाज़ यूँही तेरा समझ जाये वो महफ़िल ये नहीं,
मानो “राही” यहाँ कोई तो और तरकीब लगानी होगी,

बन्द मुट्ठी में तो नज़र किसी को आने नहीं वाली,
तो खोल कर ही किस्मत सबको दिखानी होगी।।

राही (अंजाना)

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