Site icon Saavan

अंधेरी रात है

अंधेरी रात है
नभ को ढका है बादलों ने,
छुप गए हैं सितारे,
तब उजालों को
बुलाया है लबों ने।
मुहब्बत को कहा है
आपने जबसे मिठाई,
हुई बेचैन यह रसना
कर रही है ढिढाई।
नजर भी रात में
बस दूर का
जलता उजाला देखती है।
नजरअंदाज कर के दर्द को
केवल हँसी ही देखती है।
दूर का जलता हुआ
दीपक बताता है,
नजर मुझ पर न डालो
पास का बिखरा अंधेरा देख लो,
बरफ हो आग हो या
दूसरों के वस्त्रों का दाग हो,
नजरअंदाज कर लो
हो सके शब्द गढ़ लो,
राग दो।

Exit mobile version