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अकिंचन ही कर्तव्य पथ पर

अकिंचन ही कर्तव्य पथ पर
बढ़ते गए कदम
सुध नहीं थी किस ओर
गए कदम
रास्ते में मिले अनेक राहगीर
कुछ बने मित्र
कुछ बने हमदर्द
कुछ बन गए राहगीर
जीवन के इस सफ़र को
और भी खूबसूरत बनाया
उन सभी का शुक्रिया।।

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