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अजनबी हसीना

कुछ अलग सी पगली हो तुम!
नैन लड़ाती हो
कुछ कहना भी चाहती हो
बस मुस्कुरा कर ही रह जाती हो।

मेरे इशारों में उलझ कर घबरा जाती हो
जैसे गिर ही पड़ोगी
मेरे जरा सुनिए !
कहते ही
तुम्हारा हृदय साज सा बज उठा
ऐसा महसूस हुआ मुझे।

जैसे कोई तार जोर से खींचो
तो झनझना उठता है।
तुम्हारी उखड़ती सांसे लड़खड़ाते कदम
कुछ ना कहकर भी बहुत कुछ कह जाते हैं।

और पैर मुड़ जाने पर लंगड़ाती सी तुम
मुझसे दूर भाग जाना चाहती हो।
दूर जा रही हो
जाने क्यों नजदीक आती दिखती हो।
तुम अजनबी हो!
फिर भी ना जाने !
अपनी सी क्यों लगती हो?

निमिषा सिंघल

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