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अजीब है दुनिया

अजीब है दुनिया
अजीब बाजार है दुनिया
जिंदगी का लिबास पहने
मुर्दा है दुनिया
ये रूह बेचकर रिवाज
ख़रीदा करती है
मन के अहसास जलाकर
पथर पूजा करती है
जात को अपनी पहचान बता ,
अपनी ओकात छुपाया करती है
गाय को माता बताकर
गुंडागर्दी , और
नारी को पैर की जूती बताकर
परुषार्थ सिद्ध करती है
अजीब बाजार है दुनिया
यहाँ सभी जिन्दा है, पर
अभी मुर्दा है दुनिया !

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