अदब से झुकने की कला भूल गए,
मेरे शहर के लोग अपना गुनाह भूल गए,
भटकते नहीं थे रास्ता कभी जो अपना,
आज अपने ही घर का पता भूल गए,
महज़ चन्द पैसों की चमक की खातिर देखो,
यहां अपने ही अपनों की पहचान भूल गए।।
राही (अंजाना)
अदब से झुकने की कला भूल गए,
मेरे शहर के लोग अपना गुनाह भूल गए,
भटकते नहीं थे रास्ता कभी जो अपना,
आज अपने ही घर का पता भूल गए,
महज़ चन्द पैसों की चमक की खातिर देखो,
यहां अपने ही अपनों की पहचान भूल गए।।
राही (अंजाना)