ऐसे भी रफ़ीक़ जो कयामत ढाते हैं।
दावत देकर वो अदावत निभाते हैं।
जान बनाकर जान लेने की कोशिश की,
ज़ख्मों का सेज देकर अयादत आते हैं।
ज़ुल्म करने से सहने वाला गुनहगार,
यही सोच कर अब बगावत लाते हैं।
ऐ दगा करने वाले, कुछ तो वफ़ा कर,
दोस्ती पर से लोग अकीदत उठाते हैं।
देवेश साखरे ‘देव’
1.रफ़ीक़ – दोस्त, 2. अदावत – दुश्मनी, 3.अयादत – रोगी का हाल पुछना 4. अकीदत – आस्था