मेरा मन विचलित था विह्वल था,
कान्हा ने मुझे उबार लिया।
अपना अद्भुत सा साथ दिया,
भटकन को मेरी वही थाम लिया।
मेरे अंतःकरण की शुद्धि की,
मुझे बीच भंवर से निकाल लिया।
कैसा अद्भुत था कान्हा से मिलन,
मुझे खुद से ही हो उठी जलन
हो कृष्ण मगन मैं नाचू रे
जहां भी देखूं वहां कान्हा हैं
मैं तो पी की बतियां बाचू रे!
निमिषा सिंघल