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अधूरे ख्वाब

अधूरे ख्वाब

 

थे ख्वाब जो चुन-बुन सजाए हमनें

पा मुझको तन्हा , बहुत तड़पाते हैं .

 

कारवाँ तेरी यादों का लंबा है ,

या मेरे ग़मों की रात गहरी है ,

दशकों बीते, ना क्योँ यह मिटते हैं .

 

रातों के गहन – प्रगाढ़ अंधेरों में ,

गहरी क़ब्र खोद रोज़ दफ्नाता हूँ ,

ना-मुराद लौट ज़िंदा वापस आते हैं ,

कह्ते हैं,अकेले मिटना गँवारा नहीँ ,

यूई, हैं चाहे हम अधूरे ख्वाब तेरे ,

साथ रसमें-ए-वफ़ा पूरी निभाएँगे ,

संग – संग तेरे ही कब्र में जाएँगे .

                               …… यूई

 

 

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