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अनहोनी

अनहोनी
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अनहोनी यह कैसी है ,
काली छाया जैसी है ।
हंसते हुए फूल से चेहरे ,
मुरझा गए एक ही पल में ।
काल की कराल गति से विमुख हुए प्रिय जनों से ,
अपशकुनी यह कैसी है ,
मौत के तांडव जैसी है।
हरी भरी थी घाटी जो,
अटी पड़ी है लाशों से ,
रुदन मचा है चारों ओर ,
दहशत देखो कैसी है।
हर तरफ बेबसी ,लाचारी ,
हाय यह घटना कैसी है ।
अपने प्रिय जनों से मिलने को, कातर आंखें ये कैसी हैं।

निमिषा सिंघल

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