अध्य्यन-अध्यापन का बढ़ता व्यवसायीकरण
राष्ट्र के पतन व जनता के घुटन का है कारण
अत्याचार कोई जब हद से अधिक बढ़ जाता है
प्रकृति तब बचने का कोई अवसर दिखाता है
शिक्षा जन जन की जब मूलभूत आवश्यकता
फिर हर परिवार इसके कारण क्यूं सिसकता
अब हरेक के जेब में ही है कैद जब दूरदर्शन
मुक्त होता जा रहा हर जगह सब अनुशासन
इतने शिक्षालयों की अब तो जरूरत है कहां
विश्वविद्यालय का भी है अब तो विकास थमा
हर चीज के लिए है जहां होती है प्रतियोगिता
घर पर ही हो शिक्षा अब है ऐसी अनिवार्यता