अपनी प्रोन्नति नहीं कर सकते तो, क्या दूसरे की उन्नति से जलोगे क्या?
अपनी संस्कृति को गँवा चुके हो, और खुद को भारतीयता कहने का ठोंग रचते हो?
खुद सशक्त, धनवान, समृद्ध-शक्तिशाली बन सकते नहीं और दुसरों के धन से जलते हो ।
खुद का जीडीपी गिरा चुके हो, और दुसरों के सामान को धिक्कारते हो ।।1।।
वाह क्या नीति अपना रहे हो मेरे सरकार जनता को क्यूँ धोखा दे रहे हो ?
परदेश की सामान यदि राष्ट्र में सत्याचार फैलाया तो उन्हें क्यूँ धिक्कार रहे हो ?
भोली जनता के आँखों में क्यूँ गरदा झोंक रहे हो ? कुछ तो रहम करो देश के वास्ते ।
राम के आदर्श पे चलने वाले सरकार क्यूँ भ्रष्टाचार फैला रहे हो ? ।।2।।
कुछ नहीं होगा परदेशों के सामान को प्रतिबंधित करने से ।
अगर प्रतिबंधित लगाना चाहते हो नग्नचलचित्र पे लगाओ।
अपनी संस्कृति को बचाओ देश में स्वराज्य लाओ ।
अगर देना ही चाहते हो देश को तो वीर जवान दो ।।3।।
कवि विकास कुमार