मैं तितलियों की तरह
उड़ना चाहती थी
मैं फूलों की तरह
मुस्काना चाहती थी
मैं इंद्रधनुष के रंगों सा
बिखरना चाहती थी
पर………
ज़िम्मेदारियों की ज़जीरों ने
मुझे कैद कर लिया
घर गृहस्ती की बेड़ियों ने
मुझे जकड़ लिया
पूरा घर मेरे कहने से
चलता था
सुबह उठने से लेकर सोने तक तिनका भी अपनेआप नहीं हिलता था
युवावस्था कब बढ़ते बढ़ते
अधेड़ावस्था तक पहुंच गई
ज़िदगी यूं ही जीते जीते
कब दो लोगों में सिमट गई
आज उस कगार पर खड़ी हूं
जहां सोचने पर अकेलेपन का
एहसास है
आज उस मुकाम पर खड़ी हूं
जहां अपनेआप को न गिरने देने
प्रयास है
आज…..
मेरी प्रतिज्ञा है
मैं खुद को तलाशूंगी
आज मेरी प्रतिज्ञा है
मैं अपनेआप को संवारूंगी
तितली की तरह
पंख फैला कर उड़ूंगी
फूल की तरह
खिलखिलाउंगी
इंद्रधनुष के रंगों सा
प्यार बिखराऊंगी
आसमान को छूने के लिए
दोनों हाथ बढ़ाऊंगी
जो ख्वाब अधूरे रह गए थे
उनको पूरा करने के लिए
प्रयास में कमीं नहीं लाऊंगी