अब ममता की छांँव और आत्मीयता को छोड़,
व्यवसायिक मुकाम हासिल करने में जुटी जिंदगी ।
अब कुदरती हवा और चाँदनी रात के नज़ारों को भूल,
वातानुकूलित कमरे और दूरभाष में जुटी जिंदगी ।
अब आधुनिकता की जद्दोजहद में खुशी-ग़म
बाँटना भूल, अपने आप में सिमटती जिंदगी ।
अब भीतर से खोखली होती,
दिखावटी मुखौटों से सुसज्जित होती जिंदगी।
अब वात्सल्य, स्नेह, प्रेम बंधनों को तोड़,
खुदगर्ज होती जिंदगी ।
अब मानसिक असंतुलन के बाढ़ में बहती जिंदगी।
अब भावनाओं के बिखराव में ,
मानसिक स्थायित्व ढूंढ़ती जिंदगी ।।