अब तो हमसे कोई और सफर नहीं होता,
क्यों भला उनसे अब भी सबर नहीं होता,
सब पर होता है बराबर से के जानता हूँ मैं,
एक बस उन्हीं पे मेरा कोई असर नहीं होता,
याद रह जाता गर प्यार में कोई सिफ़त होता,
खत्म हो जाता इस तरह के वो अगर नहीं होता,
रह के आया हूँ मैं उनकी हर गली सुन लो,
मान लो ये ‘राही’ वरन यूँ ही बेघर नहीं होता।।
सिफ़त – गुण
राही अंजाना