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आंखें मजबुर थी मेरी ” रहस्य ” देवरिया

हंसकर अपने दर्द छुपाने की कारिगरी मसहूर थी मेरी ।
चाहकर भी कभी रो ना सकी आंखे सजबूर थी मेरी ।।

सजती रही महेफिले बेशक ही अब औरो की शाम मे ।
हां मगर ये भी तो सच है वो शमा कभी जरूर थी मेरी ।।

” रहस्य ” देवरिया

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