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आंगन तो खुला रहने दो………………….

झगड़ों में घर के, घर को शर्मसार मत करो

आंगन तो खुला रहने दो, दीवार मत करो।

मारे शर्म के आंख उठा भी सकूं न मैं

अहसानों का इतना भी कर्जदार मत करो।

हर ओर चल रही हैं, नफरत की आंधियां

और आप कह रहे हो कि प्यार मत करो।

लफ्जों की जगह खून गिरे आपके मुंह से

अपनी जबां को इतनी भी तलवार मत करो।

हंसती हुई आंखों मेें छलक आये न आंसू

हर शख्स पे इतना भी तो एतबार मत करो।

—————–सतीश कसेरा

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