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आकांक्षाएं

अपनी आकांक्षाओं को, मैं पर देना चाहता हूं।
खुले आसमान को, मुट्ठी में कर लेना चाहता हूं।
कल्पनाओं को आकार देना इतना भी मुश्किल नहीं,
बस अपनी सोच को, नई नजर देना चाहता हूं।

देवेश साखरे ‘देव’

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