आठों प्रहर के बाद ,सूर्य देव देखो उग रहे।
प्रहरो के चक्र में फंसे हुए से दिख रहे।
ऐसे ही मनुष्य को लगाने पड़ते फेरे हैं,
जन्म- मृत्यु चक्र से निकाले प्रभु के डेरे हैं।
कष्टों से मुक्ति पाना चाहो गर तो मार्ग हैं,
बिना शर्त प्रेम प्रभु से चाहो तो कुछ बात है,
पूर्णता से जुड़कर तुम भी पूर्ण बनते जाओगे।
प्रभु के अंश का कुछ हिस्सा बन जाओगे ,
वरना जीवन चक्र में फंसे ही खुद को पाओगे।
घूमती धारा यह देखो बोझ से भरी हुई,
फिर भी घूमती यहां पर रूई के फाए की तरह।
शक्ति छीपी है आसमा धरा में तुम यह जान लो,
साथ है हमारे हर पल गर जो तुम पहचान लो।
मार्ग से गुजरते समय अगर जो तुम यह ध्यान दो,
सूर्य चंद्र साथ चलते हर घड़ी यह मान लो।
ईश्वर है सदैव गर जो तुम पहचान लो,
आवाज दो पुकार लो, शक्ति को पहचान लो।
निमिषा सिंघल