सशक्त है कमजोर नहीं,
पत्थर है केवल मोम नहीं।
विद्वती है बुद्धि हीन नहीं ,
बेड़ियों में अब वो जकड़ी नहीं।
आधुनिक है ,संकीर्ण नहीं,
संस्कृति संस्कारों से हीन नहीं।
हक पाना लड़ना जानती हैं
दिल की आवाज़ पहचानती है।
गुमराह करना आसान नहीं,
वह स्त्री है सामान नहीं।
शक्ति स्वरूपा , वो तेजोंमयी,
ममता मयी मगर दुखियारी नहीं।
सृष्टि का भार उठाए खड़ी ,
आंखों में पहले सा पानी नहीं।
हर क्षेत्र में अब वो आगे हैं ,
बीती हुई कोई कहानी नहीं।
निमिषा सिंघल