चिंतामणि सी अकुलाती हो
मुझ में क्या अद्भुत पाती हो?
चंचल मृगनयनी सी आंखों से
क्या मुझ में ढूंढा करती हो?
चंद्रमुखी सी हंसी हंस-हंसकर
अंतरात्मा को चहकाती हो।
नहीं भान जरा
नहीं मान जरा
मदिरा का छलका प्याला हो
हो सभी कलाओं में परिपूर्ण,
तुम आधुनिक मधुबाला हो।
मैं एकटक देखें जाता हूं
नैनो को हिला भी ना पाता हूं।
है रूप तेरा कुछ ऐसा कि
मैं तुझ में डूबा जाता हूं
निमिषा सिंघल