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आराध्य:- हे कृष्ण ! पुन: तुम आ जाओ

हे कृष्ण ! पुन: तुम आ जाओ
हे कृष्ण ! पुन: तुम आ जाओ ||

कि अब ना बजती
बंशी की धुन कहीं
गइयों को ठौर नहीं
माखन चुराने आ जाओ…

हे कृष्ण ! पुन: तुम आ जाओ
हे कृष्ण ! पुन: तुम आ जाओ ||

दुर्योधन यहां अब बड़े
निर्भीक हैं
द्रौपदियों का ना अब
बढ़ता चीर है
कौरवों को मिटाने आ जाओ…

हे कृष्ण ! पुन: तुम आ जाओ
हे कृष्ण ! पुन: तुम आ जाओ ||

मीरा की भक्ति का
कोई मोल नहीं
अब वो राधा, अब वो प्रेम नहीं
निश्छल प्रेम सिखाने आ जाओ

हे कृष्ण ! पुन: तुम आ जाओ
हे कृष्ण ! पुन: तुम आ जाओ ||

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