जो बढ़ रहा है हाथ नापाक उसे तोड़ना होगा,
हाथ मिलाया था जो बेशक उसे छोड़ना होगा,
रच लिए बखूबी प्रपंच और चढ़ लिए ढेरों मंच,
अब उतर कर जंग में इनका सर फोड़ना होगा,
वार्तामाप नहीं अब और कोई भी आलाप नहीं,
ये मानलो इन हवाओं का भी रुख मोड़ना होगा।।
राही अंजाना