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आवरण की आभा

लट के श्याम उलझे
केशों की वो चमक अब,
नैनों की नीलिमा अब
होंठों की लालिमा अब,
पतली सी वो कमर अब
बाली सी वो उमर अब
तोते सी नासिका अब
पाने की लालसा अब,
मेरी कलम के विषयों से
दूर हो रही है,
यह आवरण की आभा पे
मौन हो रही है।

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