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आसक्त जीवन

जीवन को बिताता है
बेमतलब के दिखावे में
तो स्वार्थ के बिछड़ने कहीं
तेरी किस्मत सोएगी
जब कर्म ब्रह्म लेखनी
एक माला में पिरोए गी
तो आडंबर की होड़
डोर थाम के ना होएगी
कर ले तू सब्र कब्र
खोदती है लालसा
नहीं तो अकेली कहीं
तेरी भियाता रोएगी
आसक्त होना छोड़ दे
तू त्याग दे व्यसन को
अपकारों से दूर देख
जीवन संपन्न को
तू तेज धर ले तरणि सा
काली निशा को छोड़ दे
जो तेरे वृद्ध में बहती है
उन हवाओ का रुख मोड़ दे

आसक्त – मोहित
व्यसन- बुरी आदत
तरणी – सूरज

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