चंद हर्फ़ तुम्हारी नज़र करता हूँ ।
तुम पे कुर्बान दिल-ओ-जिगर करता हूँ ।
मेरे ख्वाबों की ज़ीनत हो तुम,
इंतज़ार तुम्हारा हर पहर करता हूँ ।
काँटों से दामन इस कदर उलझा,
सुलझाने की कोशिश हर कसर करता हूँ ।
कभी न कभी तो मिलोगी किसी मोड़ पर,
इसी उम्मीद में जिंदगी बसर करता हूँ ।
गर आये कभी मौका जां-ए-आजमाइश का,
तुम्हें अमृत खुद को ज़हर करता हूँ ।
जहाँ भी हो खुशियों के बीच रहो,
दुआ मैं ‘देव’ शब-ओ-सहर करता हूँ ।
देवेश साखरे ‘देव’
हर्फ़- शब्द, ज़ीनत-सुन्दरता, शब-ओ-सहर- रात और दिन