तन्हा राहों पर गर मैं भी अकेला चला होता तो अब तलक मंजिल मिल ही गयी होती,
मगर इन्तजार भी कोई चीज़ होती है ‘हुज़ूर’ गुज़रगाहों पर भी जिसने हमें तन्हा रक्खा,
तन्हा राहों पर गर मैं भी अकेला चला होता तो अब तलक मंजिल मिल ही गयी होती,
मगर इन्तजार भी कोई चीज़ होती है ‘हुज़ूर’ गुज़रगाहों पर भी जिसने हमें तन्हा रक्खा,