जो कभी किया ही नहीं वो वादा याद आया,
मुझको तेरी गली से निकला तो वो इरादा याद आया,
न मन्दिर न मस्ज़िद थी राह में मेरे कोई,
फिर सर झुका तो तेरा चेहरा याद आया।।
राही (अंजाना)
जो कभी किया ही नहीं वो वादा याद आया,
मुझको तेरी गली से निकला तो वो इरादा याद आया,
न मन्दिर न मस्ज़िद थी राह में मेरे कोई,
फिर सर झुका तो तेरा चेहरा याद आया।।
राही (अंजाना)