Site icon Saavan

इश्क़ के मारा दो बेचारा

हम तो गिर कर भी संभल नहीं पाए
क्या करें चाहत की डोर ही कुछ ऐसी थी।
वो कहते रहे चिंगारी से कभी न खेलना
हम जान कर भी अनजान बने रहे
क्या करे हमारी तकदीर ही कुछ ऐसी थी
जब मिला मैं इश्क़ के जौहरी से — उसने कहा
अश्क़ न बहा ए मुकद्दर के फकीर आशिक़
जो हाल तेरा है वही हाल कभी मेरी भी थी।

Exit mobile version