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इश्के-फ़साना

इश्के-फ़साना हमारा, मशहूर जमाने में।
हमारी मोहब्बत पाक है, सही माने में।

सीने में दिल तेरे नाम से ही धड़कता है,
दिलो-जाँ कुर्बान, क्या रखा नज़राने में।

बे-इंतिहा इश्क की इंतिहा गर गुलामी है,
मुझे शर्म नहीं, तेरा गुलाम फ़रमाने में।

दिले-सूकूँ जो तेरी आँखों के ज़ाम में है,
मिला नहीं डूब कर, किसी मयखाने में।

मुतमइन है ‘देव’, मुकम्मल है इश्क मेरा,
कम हैं, जो यकीं रखते ताउम्र निभाने में।

देवेश साखरे ‘देव’

मुतमइन- संतुष्ट, मुकम्मल- पूर्ण

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