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इश्क किया तूने खुद कान्हा–1

क्या अजब दिन था वो, क्या गजब था जहाँ,
मैं था बहती नदी, वो था सागर समां!
यूं तो इश्क किया तूने खुद कान्हा,
अब तू ही बता तेरी क्या हैं सलहा!!

मेरे दिल की यही, तमन्ना रही,
आँखें कभी भी किसी से, लडे ही नहीं,
पर जब तुम मिले, नैना तुमसे से भिड़े,
ऐसे उलझते गए, फिर सुलझ ना सके!
मन की गंगोत्री से, प्रीत की गंगा ,
स्वयं ही बहने लगी, मैं रोकता रहा!!
यूं तो इश्क किया तूने खुद कान्हा,
अब तू ही बता तेरी क्या हैं सलहा!!

 

कमलनयन भँवर में मैं फंसने लगा
बनकर घटा वो मुझ पर बरसने लगा!
दिल में जो बात थी, हर पल अधूरी रही,
कभी तुम सुन ना सकी, या मैं कह ना सका!
दिल का सारा एहसास तू ही तो मेरा हैं,
उस एहसास को ये एहसास मैं दिलाता रहा,
व्यर्थ की बात पर, खुद के एहसास पर,
रूठती तुम रही, मैं मनाता रहा!!
दूर खुद तुम गयीं, पर जताती रही,
इन दूरियों का मैं ही तो कारण रहा!!
यूं तो इश्क किया तूने खुद कान्हा,
अब तू ही बता तेरी क्या हैं सलहा!!

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