उतरते साहिल पर शाम का सूरज जवां है
हाथ छूट गए लेकिन यादें रवां है
इतनी फुरसत कहाँ की लौट कर आयें
खैर मसाफ़त से इश्क़ का तजुर्बा बढ़ा है
मेरे बहकते कदमों में शराब नही शामिल
अंजाम रब्त का सर पर चढ़ा है
कोई इन्तिजाम ही नही तुम्हे भुलाने का
जो चेहरा देखा करूं तू ही तू रवां है