के तेरे दर पे मैं खुल कर के सब कुछ अर्ज़ करता हूँ,
तुझको पाने की खातिर मैं खुद को यूँ खर्च करता हूँ,
गर तू समझे मेरी खामोशी तो मुझे अच्छा लगता है,
जो न समझे तू मुझको मैं तुझसे फिर तर्क करता हूँ,
तेरी ख्वाइशों की फहरिस्त पूरी करने की चाहत में,
मैं अपने – अपनों से क्या गैरों से भी क़र्ज़ करता हूँ,
मुलाक़ात हो नहीं पाती जब कभी तुझसे राहों पर,
ये सच है मैं तेरे ख़्वाबों में उपस्थिति दर्ज़ करता हूँ।।
राही अंजाना