Site icon Saavan

उसी का शहर था उसी की अदालत।

उसी का शहर था उसी की अदालत।
वो ही था मुंसिफ उसी की वक़ालत।।
,
फिर होना था वो ही होता है अक्सर।
हमी को सजाएं हमी से ख़िलाफ़त।।
,
ये कैसा सहर है क्यू उजाला नहीं है।
अब अंधेरों से कैसे करेंगें हिफ़ाजत।।
,
चिरागों का जलना आसान नहीं था।
हवाओं ने रखा है उनको सलामत।।
,
तुमको फिक्र है न हमकों है फुरसत।
न है कोई मसला न कोई शिकायत।।
,
साहिल भँवर में है जिंदा अभी तक।
ये उसका करम है उसी की इनायत।।

#रमेश

Exit mobile version