उस के साथ चलने, का मसअला नहीं
ये बात और है के, अब हौसला नहीं
कुछ बात तो होगी, के उसने दगा दिया
उससे मुझे कोई, शिकवा गिला नहीं
सदियों गुज़र गए, कोशिशों के बावजूद
दामन में लगा दाग, अबतक धुला नहीं
ख़ाक छानता रहा, दिन रात मै मगर
आस्तीं का साँप, अब तलक मिला नहीं
मुंह फेर लिया उसने, इस क़दर अज़हर
फूल जो मुरझा गए, अबतक खिला नहीं