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एक अनकहे किस्से सा हूँ

एक सवाल सा अक्स’

हौले से कुछ बदला है

एक क़तरा अभी छलका है

बड़ी मुद्दत से पलकों पर था

वो आँसू जो ढलका है

एक अनकहे किस्से सा हूँ

अचानक उठी हिचकी सा हूँ

आईना मेरे घर का हैरत में है

मैं बदलते एक चेहरे सा हूँ

कुछ कहो या छोड़ो रहने ही दो

इस रात को ये दर्द सहने भी दो

अब आए हो तो कुछ लफ्ज़ चुनो

जो मन में है उसे ज़ाहिर होने भी दो

बेफ़िक्र है एक सवाल भी है

मेरा अक्स है थोड़ा बदहाल भी है

ज़िंदगी तो ख़ैर कट ही रही है

पर तेरे न होने का मलाल भी है

मेरी रूह में रवानी तो है

वक़्त गुज़रता नहीं फिर भी फ़ानी तो है

पन्ना दर पन्ना बेमानी सही

फिर भी मेरी एक कहानी तो है

मचलता हूँ सिसकता हूँ

अपने ही पहलु में ख़ुद रोता हूँ

कुछ-एक रोज़ का फ़साना बाक़ी है वरना

मैं हर लम्हा थोड़ा-थोड़ा मरता हूँ

 

(source:unknown)

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