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एक दर्द, अनकहा सा (कहानी)

                एक दर्द ,अनकहा सा

साल में कितने सारे मौसम आते हैं और चले भी जाते हैं, मगर जब भी वसंत और बारिश का मौसम आता है, काव्या का वो दर्द फिर से हरा हो जाता है जिसको संभालते- संभालते दो वर्ष बीत गए हैं ।

उसे बचपन की सभी यादें स्मरण हो जाती है कि कैसे रक्षाबंधन के दिन वह राकेश भैया को राखी बांधती थी और फिर राकेश उसको पहले तो चिड़ाता था, मगर फिर बाद में अपने गुल्लक के सारे पैसे दे देता था।

कैसे ! वे दोनों भाई बहन बारिश के मौसम में घर से बाहर कितनी मस्ती किया करते थे और जब ज्यादा पानी बहने लग जाता था तो वह दोनों अपनी अपनी नोटबुक निकाल कर लाते और लग जाते किसी बेहतरीन आर्टिस्ट की तरह अपनी-अपनी कागज की नाव को बनानें ।

“राकेश भैया बहुत जल्दी नाव बना लेते हो आप और मेरी तो यहां बनती ही नहीं है” काव्या की यह बात सुनकर राकेश उसकी भी नाव बना देता था तो फिर वह दोनों होड़ लगाते थे कि किस की नाव कितना ज्यादा आगे निकलती है।

एक नाव के खराब होते ही दूसरी नाव बना दी जाती थी।
यह खेल बहुत ही शानदार होता है बच्चों के लिए।
कितना अच्छा होता है हमारा बचपन !
हर कोई उस बचपन की तरफ मुड़ कर जाना चाहता है मगर यह कहा संभव है।

जिस खेल को खेलने के लिए वह दोनों भाई- बहन बारिश का इंतजार किया करते थे और बहुत खुश हुआ करते थे आज उसी कागज की नाव की यादें काव्या को सच में रुला देती है ।
अब, जब भी उसको अपने भाई की याद आती है ,तो वह बारिश से ज्यादा आंखों को बहा देती है।
  घर में उसके माता-पिता और वो ! तीनों बहुत याद करते हैं राकेश को ।
मगर उन्हें कोई गिला शिकवा नहीं है राकेश से बल्कि उनको तो गर्व है उस पर।

राकेश बहुत अच्छा बेटा था और अच्छा भाई भी था ,
मगर उससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह थी कि वह देश का एक बहादुर, वीर सिपाही था जिसने देश के दुश्मनों का डटकर सामना किया और उन्हें मौत के घाट भी उतार दिया, मगर एक गोली राकेश के सीने को आर-पार कर गई ,जिससे उसने हंसते हंसते भारत माता को अपना बलिदान दे दिया…..
  
राकेश की बहन एवं माता- पिता कितना अनकहा दर्द छुपाए बैठे हैं ,उसका अंदाजा लगाना बड़ा ही मुश्किल है।

लेकिन लोगों की नजरों में यह जताना भी बहुत जरूरी है कि उन्हें गम नहीं, बल्कि नाज है कि उनका बेटा देश के लिए शहीद हुआ है किन्तु यह पूरी सच्चाई नहीं है।
सच यही है कि नहीं कमी पूरी हो पाती है, उन लोगों की जो हमारे दिल में बसे होते हैं। उनकी यादें भूत सा चिपटी रहती हैं हमारे साथ।

हमें गर्व है ऐसे जवानों पर ! हमारे अमर शहीदों पर….
और फख्र है उनके परिवारजनों पर जो एक बेटे की शहादत के बाद दूसरे बेटे या बेटी को फिर से तैयार करते हैं, भारतीय सेना में जाने के लिए ।

सच में धन्य है वे माता- पिता और परिवार जो राकेश जैसे बेटों को जन्म देते हैं, देश पर निछावर करने के लिए !
जय हिन्द……….
                       
                        ——-मोहन सिंह मानुष

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