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एक बूंद मुस्कराहट

तुमे शायद पता नहीं,
एक दिन चुपके से मैने,
चुरा ली थी तुमारे होठों से,
एक बूंद मुस्कराहट।
कई दिन छुपा के रखता रहा,
कभी तकीये के नीचे,
तो कभी चांद के पीछे,

बहुत चंचल थी वो,
कभी चुपके से आ के,
बैठ जाती थी मेरे होठों पे,
तो कभी चांद के पीछे से
मुझे ताकती थी,
वो एक बूंद मुस्कराहट।

मैं सींचने लगा उस बूंद को,
अपनी मुस्कराहट से,
ताकी यह बन जाऐ
हंसी का एक चश्मा,

फिर एक दिन,
तुम खो गई,
और खो गई मुझसे,
वो एक बूंद मुस्कराहट।

लेकिन हैरान हूं,
वो तो मेरे पास थी,
फिर कैसे खो गई,
जहन की किसी उदेड़बुन में,
उलझ गई है शायद,
वो एक बूंद मुस्कराहट।

लेकिन अब भी
जब तुम याद आती हो,
तो आंख के किसी कोर से,
झांकती है बाहर,
वो एक बूंद मुस्कराहट।

छुपा लेता हूं आंख बंद कर के,
कि कहीं बाहर ना आ जाऐ,
और जमीन पे गिरकर,
कहीं मिट्टी में खो ना जाऐ,
आखिर एक ही तो निशानी है,
मेरे पास तेरे जाने के बाद,
वो एक बूंद मुस्कराहट।

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