यूँ तो हर एक नज़र को किसी का इंतज़ार है,
किसे दिख जाये मन्ज़िल और कौन भटक जाए, कहना कुछ भी यहाँ दुशवार है,
एक ही नज़र है फिर भीे पड़े हैं पर्दे हजार आँखों पर,
यहाँ अपनों को छोड़ लोगों को दूसरों पर एतबार है॥
राही (अंजाना)
यूँ तो हर एक नज़र को किसी का इंतज़ार है,
किसे दिख जाये मन्ज़िल और कौन भटक जाए, कहना कुछ भी यहाँ दुशवार है,
एक ही नज़र है फिर भीे पड़े हैं पर्दे हजार आँखों पर,
यहाँ अपनों को छोड़ लोगों को दूसरों पर एतबार है॥
राही (अंजाना)