मैंने भी एहसास किया ,मैं देख दृश्य वो रोया हूँ। तम्बू में रहते परिवारों के बच्चों में कितना खोया हूँ।। वो नन्हे मासूम से चेहरे जो कितने भोले भाले है, बचपन में सर ले लिया बोझ, वो कोमल पग वाले है। उनके चेहरे की मासूमी में प्यारी सी किलकारी है, उनकी कुटिया उनके जीवन में इस जी जगत से प्यारी है। उनका बचपन कितना सा अंजाना है, देख कोठियों के बच्चों को मन ही मन सकुचना है,।। उनको मिलते पैसे बेटे कुछ मेले में जाकर खा लेना, कुछ उनको वहा नही मिलता मा का चिमटा बस ले चलना।। यह देख दृश्य उन झोपड़ियों का फिर लेख आज यह लिखता है, उन ऊचे महलो वाले से घर गरीब का अच्छा लगता है।