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एै रुपसी

भुज पे आई कहा से,एै रूपसी,
नेह निश्छल निर्मल लिये प्यारी।
स्वरों की हो,शायद तुम जादुगरी।
रीझाती उर-उर तुम क्यों हमारी।
तितली की सी लगती,होतुम बागो की,
वादियों मे दहकने लगी,देख तुम्हे सुर्ख सुमन बावरी।
री! तु कौन, क्यु तडफये शु-मन हमारी।

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