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ऐ बंदे !

उसने हमें जीवन दिया ताकि हम उसकी बनाई दुनिया को
और खुबसूरत बनाए ।
हमने उसी जीवन को किसी और लक्ष्य में लगा दिया,
भगवान हंसे कहा ,”तू कब समझेंगा ऐ बंदे !” ।।

उसने हमें कई रिश्ते दिए माता पिता भाई बहन जो हमें
दिशाहिन ना होने दें ।
हमने उन्हीं रिश्तों में स्वार्थ और लालच मिला दिया,
वाहेगुरु बोले, “तू कब समझेंगा ऐ बंदे !” ।।

उसने बनाया इन्सान, हर कोई एक समान,
कोई फर्क नहीं किया, आत्मा स्वरुप स्वयं बैठ गये ।
हमने उसमें भी भेद भाव कर दिया,
जाति और मजहब जैसे कठोर शब्दों से सबको अलग कर दिया
खुदा हंसा कहा, “तू कब समझेंगा ऐ बंदे!” ।।

हद तो तब हो गई जब हम इस पर भी ना रुके,
भोजन और वस्त्र की लाठी से उस रब को बांटने लगे।
इस पर वो रब रो पड़ा और कुछ ना बोला ।।

अपनी बनाई हुई खुबसूरती,
अपनी दी हुई नेमतों को बिखरते न देख सका ।
और बिना कुछ कहे आज उसने हम सबको ये बता दिया
कि बस अब और नहीं, अब मेरी है बारी ऐ बंदे ! ।।

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