ओ देस से आने वाले बता…
क्या लाए हो मेरी ऐसी ख़बर
जो झूम उठे दिल के मंज़र
और दिल हो ये बेखबर…
क्या अब भी वहाँ की गलियों में
खुशबू वतन की आती हैं
क्या अब भी वहाँ की हवाएँ में
वैसे ही ठंडक भाती हैं
क्या अब भी वहाँ की बरखाएँ
छम छम आवाजें लगाती है
ओ देस से आने वाले बता…
क्या लाए हो मेरी ऐसी ख़बर
जो झूम उठे दिल के मंज़र
और दिल हो ये बेखबर…
वो बूढ़ी माँ खुश तो है
जो लोरिया हमको सुनाती थी
जब रोना आए खिलौने पे,
तो यूँ चुप कर जाती थी
फसलों के रौनक रंगो में
जवान है क्या उमंगों में
क्या उस पे किरने पड़ती हैं
और लालिमा होती जाती हैं
मेरे हाल पे रोने वाले
क्या अब भी वहाँ रोते हैं
क्या शामों की हथेली पर वैसे
रंगीन नजारे मिलते हैं
क्या अब भी शफ़क़ के सायों में
दिन रात के दामन मिलते हैं
ओ देस से आने वाले बता…
क्या लाए हो मेरी ऐसी ख़बर
जो झूम उठे दिल के मंज़र
और दिल हो ये बेखबर…
क्या ये वर्दी के चेहरे भी
वो भूल कभी ना पाती हैं
जिस आँख से आँसू बहते हैं,
उस आँसू को छुपाती है
जो छोड़ के आए घर अपने
वो दीवारे भी पुकारती है
उनके भोली सूरत पे,
क्या अब भी हँसी वो आती हैं
जो कहती सर रख के दिल पे,
क्या वो मुझको याद करती हैं
ओ देस से आने वाले बता…
क्या लाए हो मेरी ऐसी ख़बर
जो झूम उठे दिल के मंज़र
और दिल हो ये बेखबर
मनोज कुमार यकता