खत्म न हो जश्ने-रौनक हँसीन शाम की।
आ टकरा लें प्याला और एक जाम की।
देखो साकी खाली ना होने पाए पैमाना,
ले आओ सारी मय, मयकदे तमाम की।
आ टकरा लें प्याला और एक जाम की।
वक्त की क्या हो बात, जब दोस्त हों साथ,
फिर किसे परवाह, हालाते-अंजाम की।
आ टकरा लें प्याला और एक जाम की।
कोई गम नहीं, फिर होश रहे या ना रहे ,
पर्ची लिख छोड़ी जेब में, अपने नाम की।
आ टकरा लें प्याला और एक जाम की।
चार दिन की है ये जवानी, ये जिंदगानी,
फिर ना तेरे काम की, ना मेरे काम की।
आ टकरा लें प्याला और एक जाम की।
देवेश साखरे ‘देव’