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कंजूस

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( कंजुस )

भगवान की कृपा हैं सब कुछ हैं
धन हैं दौलत हैं घर हैं परिवार
एक रुपया जेब से नहीं निकलती
कंजुसी से हैं बहुत बेचारे लाचार

खाने को हैं बहुत कुछ घर में
लेकिन करते सुखी रोटी का आहार
कपड़े पहनते फटे पुराने दिखते हैं गरिब
कंजुसी से बहुत हैं बेचारे लाचार

घर के पैसे से बेटे करते हैं मौज
हाय – हाय पैसा करते हैं हर रोज
पैसे के आगे कुछ सुझता नहीं यही हैं रौब
कंजुसी से बहुत हैं बेचारे लाचार

पेट भर आहार न करते पानी का करते उपयोग
नोटो में लग रहे दीमक देखो करते सदुपयोग
दान धर्म पर एक चवन्नी नहीं देते
कंजुसी से हैं बहुत बेचारे लाचार

महेश गुप्ता जौनपुरी
की कलम से……

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