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कब के बुझ चुकी

वो जगह छूटी
वो लोग छूटे,
वो मन की लगी
कब के बुझ चुकी,
वो चाहत
बहुत दूर जा चुकी,
वो गलियां अब
बेगानी हो चुकी
फिर भी नजरें
उस ओर पडते ही,
आँसू टपक पडे,
वो आँसू
माटी के भाव बिक गये।

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