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“कब तक करोंगे यूँ बेईमानी खुद से”

कब तक करोंगे यूँ बेईमानी खुद से।
मुझे छोड़कर करोगे,नादानी खुद से।।
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हमारी दास्तानों को फरेब कहने वाले।
लिख नहीं पाओगें ये,कहानी खुद से।
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तन्हाई में मिलें है लोग जो समन्दर किनारे।
उनका अश्क़ है,या है यहाँ पानी खुद से।।
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हमने बसर की जिंदगी ग़मो के दरम्यान।
हमें दुश्मनो से नहीं, है परेशानी खुद से।।
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किताबो में हम तुमको नहीं मिलने वाले।
याद करना हो तो कर लो ज़ुबानी खुद से।।
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बचपन ऐसे गुजरा की जैसे लम्हा हो कोई।
ये उम्र ठहरी तो हैरान है जिन्दगानी खुद से।।
@@@@RK@@@@

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