समंदर के किनारे बैठे
कभी लहरों को गौर से देखा है
एक दूसरे से होड़ लगाते हुए ..
हर लहर तेज़ी से बढ़कर …
कोई छोर छूने की पुरजोर कोशिश करती
फेनिल सपनों के निशाँ छोड़ –
लौट आती –
और आती हुई लहर दूने जोश से
उसे काटती हुई आगे बढ़ जाती
लेकिन यथा शक्ति प्रयत्न के बाद
वह भी थककर लौट आती
.बिलकुल हमारी बहस की तरह !!!!!