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कभी शौक था मुझे….

कभी शौक था मुझे,
रंगों से खेलने का,
सपनों को बुननें का,
तारों को गिनने का,
चंदा से छिपने का ,
फूलों को छूने का,
कभी थी झूले की चाह,
तो कभी गुड़ियों की
कभी दौड़ती थी ,
कभी हंसती थी,
कभी मांगती थी, कुछ पैसे।
त्योहारों में।
दिवाली के दियों की,
चाह करती थी।
होली के रंगों की और
पिचकारी की।
बहुत उमंगे होती थी।
पर अब न चाह है,
इन सब चीजों की।
बस थोड़ी मुस्कान,
और थोड़ी खुशियां दे दे ।
अब यह जिंदगी…

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