Site icon Saavan

कविता:- अक्सर भूल जाता हूं मैं!!

वो दूसरों की गलती
वो दूसरों पर एहसान
चाहे मिले बेइज़्जती
या मिले सम्मान
वो दर्द का आलम
वो प्रेमिका की बेवफाई
वो उससे मिला धोखा
या फिर लंबी जुदाई
अक्सर भूल जाता हूं मैं, अक्सर भूल जाता हूं मैं।

वो दुश्मनों का वार
चाहे मित्र निकले गद्दार
वो उनकी कुटिल हंसी
या दिखावे का प्यार
वो मेरे चाहने वाले
बने आस्तीन का सांप
हरकतों में उनकी मैंने
ली थी जो गलती भांप
अक्सर भूल जाता हूं मैं, अक्सर भूल जाता हूं मैं।

वो छीना था जो मुझसे
मेरी मेहनत का कमाया धन
दुनिया की भीड़ में भी
वो मेरा अकेलापन
वो रास्तों के पत्थर
वो मंजिल की दीवार
वो मेरे पैरों के छाले
और दिन जो गुज़रे बेकार
अक्सर भूल जाता हूं मैं, अक्सर भूल जाता हूं मैं।

वो मां से खाई मार
और बाप की डांट फटकार
सब कुछ दिखता है मुझको
उनके दिल में छिपा प्यार
पर मैं घर जाकर अपनी
मां की गोदी से लिपटकर
रखकर सिर आँचल में
मैं अंदर ही अंदर
अपने आंसुओं को पी जाता हूं मैं
अक्सर भूल जाता हूं मैं, अक्सर भूल जाता हूं मैं.!..!…!….!

धन्यवाद!!!!!!!!

रोहन चौहान?

Exit mobile version